“रेप या बलात्कार” यह शब्द भारत में रोज सुनना आज कल आम सी बात हो गयी है। आज कल इसमें भी धर्म, जाति शामिल हो गए है। अगर किसी उच्च वर्ग की लड़की का रेप होता है, तो पूरा समाज साथ देता है। लेकिन किसी निम्न वर्ग की लड़की के साथ रेप होता है तो वही समाज उस पर चरित्रहीन होने का टैग लगा देता है। उसके परिवार वालो को धमकाया जाता है, कि अगर पुलिस में गए तो मार देंगे। यह कितनी आम सी बात हो गयी है। अगर कोई दोषी किसी बड़ी संस्था या पार्टी से है तो उस पर कार्यवाही नहीं होगी, बल्कि उसे सम्मानित किया जाएगा। किंतु यह कौन करता है इससे बड़ा मुद्दा यही है कि रेप होते क्यों है?
क्या लड़कियों के छोटे कपड़े पहनने से या फिर देर रात तक बाहर रहने से! या फिर इसलिए कि पुरुष प्रधान समाज इस बात को साबित करने में लगा हुआ है कि पुरुष जो करे वो सही है। अगर वो किसी का रेप करते है या सरे आम छेड़छाड़ करते है तो उनको महान समझा जाएगा और उस लड़की को चरित्रहीन। यह दोगली सोच आती कहा से है? शायद हमारे घर से ही! क्योंकि लड़कों के घर देर से आने पर उनसे कोई सवाल नहीं पूछता जबकि लड़कियों के देरी से घर आने पर घर वाले तो दूर की बात है मौहल्ले वाले तक बाते बनाने लगते है।
यही कुछ हाल 14 सितम्बर 2020 को 19 साल की लड़की मनीषा का भी हुआ। जो उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले से थी जिसके साथ गैंग रेप हुआ और दो हफ़्तों तक हॉस्पिटल में जिंदगी और मौत के बीच झूलने के बाद उसने दम तोड़ दिया। वो इस वहशी समाज से जंग हार गई और अफसोस कि बात ये है कि कुछ लोग आरोपियों को माला पहनाकर उनका स्वागत कर रहे हैं कि उन्होंने बहुत अच्छा काम किया।
वहीं दूसरी तरफ मीडिया ये बताने में लगी है कि रेप तो हुआ ही नहीं है। जबकि हाथरस पीड़िता मृत्यु को आगोश में भरने से पहले चीख-चीख कर ये बोल रही थी कि उसके साथ रेप हुआ है और पहले भी वो लोग उसके साथ एक बार रेप करने की कोशिश कर चुके है। जबकि कुछ नेताओं ने तो उसे चरित्रहीन तक बता दिया। सवाल यह है कि क्या हम इसी तरह हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे या फिर कुछ कर भी पाएगें?
हर दिन भारत मे न जाने कितने रेप होते हैं जो पुलिस की सूची तक पहुँच ही नहीं पाते। क्योंकि या तो उन लोगों के ऊपर किसी शक्तिशाली संस्था का हाथ होता है या फिर पीड़िता के माँ बाप यह बोलकर चुप हो जाते है कि बदनामी हो जाएगी।
यह एक बड़ा सवाल है जिसका जवाब ढूंढने में सालों लग जाए या फिर कभी कोई मजबूत निष्कर्ष निकले ही ना । रेप की वारदातें दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही हैं। मगर कोई हल निकलता हुआ दिखाई नहीं देता।
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