सन 2012-देश भर में काँग्रेस विरोधी लहर चल रही थी.. जगह जगह आंदोलन चल रहे थे । भ्रष्टाचार से लेकर महंगाई, शिक्षा से महिला सुरक्षा, इस साल के आंदोलन में कोई भी मुद्दा अछूता नहीं रहा था। एक संक्रमण काल चल रहा था। लग रहा था अब जो सरकार आएगी वो देश की दशा और दिशा दोनों बदलेगी। महिलाओं और युवा वर्ग की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाएगी और इस माहौल को बीजेपी ने बखूबी भुनाया।
2014-केंद्र में बीजेपी की सरकार बनी। सब कुछ ठीक चल रहा था। अच्छे दिन के सपने दिखाए गए। जनता ने भी मोदी जी के हर फैसले का आंख मूँद कर समर्थन किया। भले ही वो सारे फैसले देश को गर्त में ले जाने लगे। यही वो गलती हो गई जो नहीं करनी चाहिए थी। एक अंध भक्त का दौर शुरू हो गया। जिन मुद्दो पर सरकार बनाई गई थी वो कब हवा हो गए पता ही ना चला। फिर जो मुद्दे युवा के लिए अनुपयोगी ( Use Less) थे वो प्रमुख हो गए। उन्हें प्रभावी रूप से लागू किया गया।
वर्तमान यानी आज-आज… सच कहें तो अब देश का अधिकांश वर्ग भविष्य की सोचना छोड़ चुका है। उसे आज की चिंता है.. करे भी क्यूँ ना अगर आज रोटी का जुगाड़ होगा तभी तो आने वाले कल को देख सकेगा।
- आए दिन बच्चियां, महिलाएं बलात्कार का शिकार हो रही हैं… लेकिन सभी दल और समूह शांति से सो रहे हैं। उनके लिए राम राज्य आ चुका है।
- देश में हर जगह आम आदमी सर्वाधिक समस्याओं से जुझ रहा है। लेकिन हमारी मीडिया टीआरपी के लिए इतना नीचे गिर चुकी है कि उसे बाढ़, बेरोजगारी, असुरक्षा जैसे हालातों में भी पाकिस्तान दिखाई देता है।
- शिक्षा की स्थिति का क्या ही कहना। युवा वर्ग के पास डिग्री है लेकिन नौकरी नहीं.. वो क्या ही करें…। जब देश के नीति निर्माता स्वंय कह रहें हैं कि नौकरी अब मुंगेरीलाल के सपने जैसी है।
- न्याय के मंदिर फिलहाल खुद न्याय की तलाश कर रहे है… तो अगर आप आम आदमी है तो न्याय मिलना कोसों दूर की बात है।
- भ्रष्टाचार तो हमारे घर आकर बैठ गया है। कोरोना जैसी महामारी भी इसके लिए अवसर बन गई है।
कुल मिलाकर कहें तो देश में सवाल पूछना, अपने अधिकारों की बात करना, रोजगार की बात करना, महिला सुरक्षा की बात करना फिलहाल के लिए प्रतिबंधित है। अभी मस्त लूटने का माहौल है। जिसे मौका मिल रहा है लूट रहा है। अगर आप भी चाहे तो इस लूट-मार मे शामिल हो जाइए…क्योंकि ये न्यू इंडिया है।
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